धर्म

अपरा एकादशी व्रत से प्राप्त होते हैं सभी सुख

आज अपरा एकादशी है, हिन्दू धर्म में अपरा एकादशी का खास महत्व है। इस व्रत के प्रभाव से भक्त के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं, तो आइए हम आपको अपरा एकादशी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

जाने अपरा एकादशी व्रत के बार में 

ज्येष्ठ महीने की कृष्ण पक्ष को आने वाली एकादशी से सभी तरह के कष्टों से छुटकारा मिलता है और सुख मिलता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा से भक्त को सुखमय जीवन मिलता है। इस व्रत को करने से भक्तों को धन-सम्पदा मिलती है। इसे करने से सुख की देवी खुश रहती हैं और भक्त को धनवान बनाती हैं, इसी वजह से इस एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में एकादशी का खास महत्व है। अपने पापों की मुक्ति और पुष्य पाने के लिए भक्त एकादशी का व्रत करते हैं। आने वाली 30 मई को अपरा एकादशी है तो आइए हम आपको अपरा एकादशी की महिमा बताते हैं।

इन नामों से भी जानी जाती है अपरा एकादशी 

अपरा एकादशी को भद्रकाली एकादशी, अचला एकादशी, और जलक्रीड़ा एकादशी भी कहा जाता है। अपरा एकादशी के दिन व्रत रखने से पुण्य और सम्मान मिलता है। सनातन शास्त्रों में अपरा एकादशी की महिमा का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है। इस व्रत के पुण्य-प्रताप से व्रती द्वारा जाने और अनजाने में किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही साधक को ब्रह्म वध समेत नाना प्रकार के शास्त्र विरुद्ध कार्य करने से लगने वाले दोषों से भी मुक्ति मिलती है। इसके अलावा मृत्यु उपरांत साधक को विष्णु लोक में ऊंचा स्थान प्राप्त होता है।

जानें अपरा एकादशी का शुभ मुहूर्त

पंडितों के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की तिथि 02 जून को प्रातः काल 05 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 03 जून को देर रात 02 बजकर 41 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि से गणना की जाती है। इस प्रकार 02 जून को अपरा एकादशी मनाई जाएगी।

अपरा एकादशी के पारण का समय

सामान्य भक्तजन 03 जून को सुबह 08 बजकर 05 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 10 मिनट पर स्नान-ध्यान, पूजा पाठ कर पारण कर सकते हैं। वहीं, वैष्णव समाज के लोग 04 जून को सुबह 05 बजकर 23 मिनट से लेकर 08 बजकर 10 मिनट के मध्य पारण कर सकते हैं। पारण यानी व्रत तोड़ने से पहले ब्राह्मणों को अन्न और धन का दान अवश्य करें।

अपरा एकादशी का व्रत रखने से मिलती है पापों से मुक्ति 

अपरा एकादशी पुण्य देने वाली पवित्र तिथि है। इस दिन व्रत रखने से भक्त को पापों से भी मुक्ति मिल जाती है। अपरा एकादशी का व्रत रखने से जीवन में चली आ रही पैसों की परेशानी से राहत मिलती है। इसे करने से अगले जन्म में व्यक्ति धनी घर में पैदा होता है।

अपरा एकादशी व्रत के दिन ऐसे करें पूजा

पुराणों में कहा गया है कि व्यक्ति को दशमी के दिन शाम को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए और रात में भगवान का स्मरण करके सोना चाहिए। एकादशी के दिन प्रातः उठकर मन के सभी विकारों को दूर कर दें और नहाने के बाद भगवान विष्णु की अराधना करें। पूजा में श्रीखंड चंदन, तुलसी पत्ता, गंगाजल एवं मौसमी फलों को प्रसाद के रूप में चढ़ाएं। व्रत रखने वाले को दूसरों की बुराई, झूठ, छल-कपट से दूर रहना चाहिए। जो भक्त किसी वजह से व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें एकादशी के दिन चावल नहीं रखना चाहिए। जो भक्त एकादशी के दिन विष्णुसहस्रनाम का पाठ करते हैं, उन पर भगवान विष्णु की खास कृपा बनी रहती है।

अपरा एकादशी व्रत से प्रेत बाधा से रहते हैं दूर

पुराणों में भगवान विष्णु की कृपा की भी चर्चा की गयी है। पद्मपुराण में कहा गया है कि अपरा एकादशी व्रत रखने से इंसान को प्रेत योनि में जाकर कष्ट नहीं भोगना पड़ता है। प्रेत योनि से मुक्ति देने वाली इस एकादशी का नाम है अचला एकादशी।

अपरा एकादशी का  है खास महत्व

ऐसा माना जाता है कि गंगा नदी के किनारे पितरों को पिंडदान देने से जो फल मिलता है वही फल, अपरा एकादशी का व्रत करने से मिलता है। अपरा एकादशी के व्रत का जो फल मिलता है वह कुंभ में केदारनाथ या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में सोने के दान करने के समान है।

अपरा एकादशी व्रत से जुड़ी कथा

पुराणिक कथाओं के अनुसार बहुत पहले महीध्वज नाम के एक धर्मात्मा राजा थे। इन राजा का छोटा भाई छोटा भाई वज्रध्वज पापी था। इसने एक रात को उठकर अपने बड़े भाई महीध्वज को मार दिया। इसके बाद महीध्वज के शरीर को पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया। धर्मात्मा राजा की अकाल मौत के कारण धर्मात्मा राजा को प्रेत योनि में जाना पड़ा। राजा प्रेत के रूप में पीपल पर रहने लगे और उस रास्ते में आने जाने वालों को तरह-तरह से परेशान करने लगे।

एक दिन उस तरफ से धौम्य ॠषि गुजर रहे थे। ऋषि ने जब प्रेत को देखा तो अपनी तपस्या से उसका सब हाल जान लिया। ॠषि ने राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के बारे में सोचा और प्रेत को पीपल के पेड़ से उतार कर और परलोक विद्या का उपदेश देने लगे। उसी दिन ज्येष्ठ महीने की एकादशी तिथि थी। ऋषि ने अपरा एकादशी का व्रत किया था और एकादशी के पुण्य को राजा को दे दिया। इस पुण्य से राजा प्रेत योनि से मुक्त हो गए और दिव्य रूप धारण कर स्वर्ग चले गए।

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