उत्तर प्रदेशनई दिल्ली

नीति आयोग की खाद्य तेल रिपोर्ट जारी: आत्मनिर्भरता की दिशा में रणनीति और मार्ग

नई दिल्ली: नीति आयोग के उपाध्यक्ष  सुमन बेरी ने बुधवार को “पाथवे एंड स्ट्रैटेजीज फॉर एक्सेलेरेटिंग ग्रोथ इन एडिबल ऑयल्स टुवर्ड्स द गोल आत्मनिर्भरता” शीर्षक वाली रिपोर्ट जारी की। इस अवसर पर नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, आईसीएआर संस्थानों और उद्योग जगत की कई हस्तियां मौजूद थीं। यह रिपोर्ट नीति आयोग की वरिष्ठ सलाहकार (कृषि) डॉ. नीलम पटेल द्वारा प्रस्तुत की गई।

रिपोर्ट में यह बताया गया है कि पिछले दशकों में देश में खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति खपत में अप्रत्‍याशित वृद्धि हुई है, जो 19.7 किलोग्राम प्रति वर्ष तक पहुंच गई है। इस बढ़ती मांग ने घरेलू उत्पादन को पीछे छोड़ दिया है, जिससे आयात पर भारी निर्भरता बढ़ गई है। वर्ष 2022-23 में भारत ने 16.5 मिलियन टन खाद्य तेलों का आयात किया, जबकि घरेलू उत्पादन देश की आवश्यकताओं का केवल 40-45 प्रतिशत ही पूरा कर सका।

रिपोर्ट में देश के खाद्य तेल क्षेत्र की वर्तमान स्थिति और भविष्य की क्षमता का व्यापक विश्लेषण किया गया है। इसमें आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए एक विस्तृत रोडमैप पर जोर दिया गया है। रिपोर्ट में तीन प्रमुख दृष्टिकोणों पर विचार करते हुए 2030 और 2047 तक खाद्य तेल की मांग और आपूर्ति के बारे में भविष्यवाणियां की गई हैं।

रिपोर्ट में तिलहन फसलों की पैदावार बढ़ाने और खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए कई रणनीतिक हस्तक्षेपों का सुझाव दिया गया है। इसमें फसल प्रतिधारण और विविधीकरण, क्षैतिज और ऊर्ध्वगामी विस्तार जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन रणनीतिक हस्तक्षेपों को अपनाकर, देश घरेलू खाद्य तेल उत्पादन में 43.5 मिलियन टन की वृद्धि कर सकता है, जिससे आयात निर्भरता कम होगी और आत्मनिर्भरता की दिशा में देश को मजबूती से आगे बढ़ाया जा सकेगा।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि तिलहन फसलों की उपज बढ़ाने, बीज उपयोग और प्रसंस्करण क्षमताओं को अनुकूलित करने, और बेहतर प्रौद्योगिकियों को अपनाने से देश की खाद्य तेल उत्पादन क्षमता में सुधार हो सकता है।

इस रिपोर्ट का उद्देश्य भारत को खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक सशक्त मार्गदर्शन प्रदान करना है, जिससे देश की आर्थिक स्थिरता और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके।

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